Saturday, April 30, 2022

 तुम आई !

जैसे पतझड़ के बाद बसंत

और संग

लाई बहार


मैं कोई माटी का टुकड़ा

और तुम जैसे कोई कुम्हार


हौले हौले थपक थपक कर

तुमने मुझे तराशा चाक पे


प्रेम से 

तकरार से 

मनुहार से


तुमने मुझे समझा इतना

जितना मैं भी खुद को नही समझ सका


लग जाओ सीने से

सुनो इस दिल की धड़कन

पुकारती नाम तेरा 


---- सुनिल #शांडिल्य

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