Sunday, May 1, 2022

 ओढ़ जो लेती हो

तुम मुझे ..


बिखर जाता हूं मैं

तेरी आगोश में ..


सांसों की हरारत 

पिघलाती मुझे


उंगलियों की शरारत 

से सिहर उठता हूं


कानों में मिश्री घोलती

तेरी फुसफुसाहट ..


जाने किस लोक में

सैर को निकल जाता हूं


तुम बन जाती हो चांद

और मैं तुम्हें निहारता रहता हूं !


---- सुनिल #शांडिल्य

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