गोरा बदन,तेरा चेहरा हिजाबी
निगाह शराबी,रुखसार गुलाबी
बना कर झुलफें,करती इशारे
दिखाए कितने ख़्वाब ख़याली
मुमकिन कहाँ की हो नज़्म बयाँ
ग़ज़ल सी तू,या मुकम्मल शायरी
मौसम बेवफ़ा,और क़ातिल अदा
क्यों बहाती है मेरा ख़ून शहाबी
लिख दिया तुझे इन अ'सआर में
हुआ शेर फिर"अल्फ़ाज़"इंतिख़ाबी
---- सुनिल #शांडिल्य
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