तेरी इक छुअन की
तमन्ना कबसे पाल रखी
पास आओ की
जज्बात मेरी मचली है
अब मुझको दूर से
यूं न तड़पाओ तुम
रात है शमां है
बहके बहके अरमान हैं
चली पुरवाई
हुआ बदन सर्द
सीने से लगकर
सांसो से सुलगा दो तुम
शर्म लाज की घुंघट
का परदा हटा अब
की आखिरी सांस तक
तू मुझे जरूरी है !
---- सुनिल #शांडिल्य
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