मेरे पास से जो तुम गुजरती
कलम मेरी है मचलने लगती
लचक कर जो तुम चलती
स्याही में कलम डूबने लगती
उंगलियां बदन के पोर पोर पे
आहिस्ता आहिस्ता सरकती
कलम मेरी राफ्ता राफ्ता सरकती
मिलन की कविताएं उकेरती जाती
पन्नों पे मेरी कविताएं नृत्य करती
प्रेम से होकर सराबोर गीत रचती
---- सुनिल #शांडिल्य
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