Thursday, June 2, 2022

 मैं बहता वरुणा का पानी 

तू काशी की गंगा ।

मिलन तुम्हारा कर देता है 

मेरे मन को चंगा ।।


तुझमें ही अस्तित्व ढूँढता

खुद अपने को खोकर ।

हाथ पकड़कर चलना चाहूँ 

मैल मैं सारे धोकर ।


तू तो भरी है धान कटोरा 

मैं हूँ भूखा  नंगा ।

मिलन तुम्हारा कर देता है 

मेरे मन को चंगा ।।


---- सुनिल #शांडिल्य

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