जीवन है तब तक
सांसें चलती है जब तक
क्या सांसों का चलना
ही जीवन है कहलाता
हां,तकता हूं मैं राह मौत की
ये जीवन अब मुझे डराता
तेरे इल्जामों का बोझ अब
मुझसे सहा नहीं जाता
तन्हाई में तकता हूं दीवारे
काली रातें मुझको निगलती
तू क्या जाने तेरे बिन मैं
घुट घुट मरता हूं रोज
---- सुनिल #शांडिल्य
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