Friday, July 1, 2022

 जिंदगी और मेरे बीच गजब की जंग है ;

रोज इससे खेलता हूं पीछा छुड़ाना चाहता हूं; 


जाने क्या क्या कर जाता हूं..

जिंदगी के अंतिम छोर पे जाकर लौट आता हूं..

तरह तरह के एडवेंचर करता हूं.. 


कभी कभी लगता है की 

अब जिंदगी से पीछा छूटने ही वाला है, 

की ये कमबख्त फिर मुझे दबोच लेती है ..


अपनी जिंदगी को कहता हूं,

बोल कितने पल का मेहमान हूं ?, 

फिर आंखें खोल देता हूं,


जिंदा हूं मैं अब भी 

सहसा येअहसास हो जाता है,

ओह फिर से जीत गई.."जिंदगी"


ना किसी से कोई गिला ना शिकवा ..

जिसने जो दिया मेरे हिस्से का था 

वो प्रेम भी, नफरत भी, धोखा भी,


खैर .. 

यात्रा जारी है ...  

अनवरत ..

जिंदगी तू कभी तो हारेगी ही ..

कभी तो मैं जीतूंगा ही ..


---- सुनिल #शांडिल्य

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