धूप_मे कितना जलना पड़ता है ;
मंजिल का वो सुख पाने को..
दुख बहुत सहना पडता है ;
गीत मनचाहा गाने को..
कितने पतझड सहने पड़ते हैं ;
तब हो सकीं बसंती मनुहारें..
उस पीड़ा की कोई खबर ;
कहाँ हो सकीं कभी जमाने को ..
---- सुनिल #शांडिल्य
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