Tuesday, July 19, 2022

 धूप_मे कितना जलना पड़ता है  ;

मंजिल का वो सुख पाने को..


दुख बहुत सहना पडता है  ;

गीत मनचाहा गाने को..


कितने पतझड सहने पड़ते हैं ;

तब हो सकीं बसंती मनुहारें..


उस पीड़ा की कोई खबर ;

कहाँ हो सकीं कभी जमाने को ..  


---- सुनिल #शांडिल्य

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