ऐ मेरी कलम धीरे_धीरे चल
करती चल बाला का श्रृंगार
देख खिल जाए मुरझे चेहरे
जो निराशा में अभी पड़े।
ऐ मेरी कलम मधुर-मधुर गा
गीत रस भरे सुनाती जा
खिल जाए सखी मुख आभा
निहार सौंदर्य मुग्ध हो दिवाना।
---- सुनिल #शांडिल्य
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