Monday, July 25, 2022

 अनछुयी बाला की मधुर

मुस्कान है मेरी गजल


दुनिया के दाव पेंच से

अनजान है मेरी गजल


जहाँ न गम की घटा हो

न कहर का खौफ छाया


उस कल्पना के लोक की

पहचान है मेरी गजल


जहां न प्यासा हो आंचल

न बहे नयनो का काजल


मानवता की विजय का

जयगान है मेरी गजल


---- सुनिल #शांडिल्य

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