Thursday, July 7, 2022

 बेइंतेहा दर्द है छुपाना चाहता

पर मुझे छुपाना भी नही आता


बहुत कुछ है लिखने को

पर थोड़ा बहुत ही लिख पाता


आंखें डबडबाई हुई रहती

चेहरा मुस्कुराता हुआ रहता


उंगलियां दिल के अहसास

कलम से पन्नों पे बिखेर जाता


पोंछ लेता हूं मैं नम आंखें ..

पर कागज़ पे दर्द छलक जाता ।।


---- सुनिल #शांडिल्य

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