बेइंतेहा दर्द है छुपाना चाहता
पर मुझे छुपाना भी नही आता
बहुत कुछ है लिखने को
पर थोड़ा बहुत ही लिख पाता
आंखें डबडबाई हुई रहती
चेहरा मुस्कुराता हुआ रहता
उंगलियां दिल के अहसास
कलम से पन्नों पे बिखेर जाता
पोंछ लेता हूं मैं नम आंखें ..
पर कागज़ पे दर्द छलक जाता ।।
---- सुनिल #शांडिल्य
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