Thursday, August 25, 2022

 पर्वत से रूठी नदिया

तुनक मिज़ाजी निकल पड़ी

पत्थर को ठोकर मारा

माटी को गले लगाया

अनगिनत बाधा को पार किया

पर कहा किसी का ना माना

 

कभी ठिठकी कभी सकुचाई

कुछ लजाई कुछ मुस्काई

मिल गया उसका गंतव्य

सागर को सौंपा सर्वस्व

वक्षस्थल से लग गई सरिता

बहने लगी अश्रु धारा


---- सुनिल #शांडिल्य

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