पर्वत से रूठी नदिया
तुनक मिज़ाजी निकल पड़ी
पत्थर को ठोकर मारा
माटी को गले लगाया
अनगिनत बाधा को पार किया
पर कहा किसी का ना माना
कभी ठिठकी कभी सकुचाई
कुछ लजाई कुछ मुस्काई
मिल गया उसका गंतव्य
सागर को सौंपा सर्वस्व
वक्षस्थल से लग गई सरिता
बहने लगी अश्रु धारा
---- सुनिल #शांडिल्य
No comments:
Post a Comment