सरस ह्रदय में व्याप्त उपवन
सुदर सघन विचारो सा मन
भाव पावस पवित्र सा तन
नित्य दीप जले नूतन नूतन
ह्रदय में प्रेम सर्वत्र समाया
ह्रदय मे प्रवेश प्रेम से पाया
उदगार सुगंधित पुष्प से महके
उर बना स्वमेव एक देव मंदिर
स्वयं ह्रदय से निकले रसधारा
प्रेम ये कैसा अनुपम रूप तुम्हारा
---- सुनिल #शांडिल्य
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