मादकता के पाशमें मौसम हवा दिगंन्त
बौराये सब बाग बट हुये सिरफिरे सन्त
वैवाहिक पंड़ाल सी साजी धरा बहुरंग
पुष्प नाचते गा रहे सोहर बन्ना भृंग
आलिंगन मे बद्ध हो विटप लता मदहोश
ऊपर से बेशर्म से झोंके भरते जोश
गुनगुन दोपहरें हुयीं रातें हुयी मदंग
सहरें गुलदस्ता हुयीं चारो पहर उमंग
---- सुनिल #शांडिल्य
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