Friday, September 2, 2022

 शायद लकीरों की क़िस्मत तुम्हीं हो।

ख्वाब हो तुम इक हकीकत तुम्हीं हो।


मेरी हर सुबह,हर इक शाम तुम हो,

आदत हो मेरी,जरूरत तुम्हीं हो।


लगता हैं जैसे तुम,मेरे सब गुनाहों की,

रियायत हो कोई और नसीहत तुम्हीं हो।


शामिल हो तुम ही,मेरी गलतियों में,

सहमत भी हो तुम,बगावत तुम्हीं हो।


---- सुनिल #शांडिल्य

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