Tuesday, September 13, 2022

 आसमा खुला रखो, चांद पे पहरा न हो

मैं ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ, तू हैरां न हो


जिसके दीदार से उड़ जाये चैंनो सुकून

कोई इतना खूबसूरत, चेहरा न हो


अगर डूबे तो निकलना मुश्किल हो जाये

आंखो का समुंदर इतना गहरा न हो


निकले तलाश में तो, मिल जाये मंजिल

शर्त ये हैं कि मुसाफ़िर ठहरा न हो


---- सुनिल #शांडिल्य

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