आसमा खुला रखो, चांद पे पहरा न हो
मैं ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ, तू हैरां न हो
जिसके दीदार से उड़ जाये चैंनो सुकून
कोई इतना खूबसूरत, चेहरा न हो
अगर डूबे तो निकलना मुश्किल हो जाये
आंखो का समुंदर इतना गहरा न हो
निकले तलाश में तो, मिल जाये मंजिल
शर्त ये हैं कि मुसाफ़िर ठहरा न हो
---- सुनिल #शांडिल्य
No comments:
Post a Comment