धुआं धुआं सा मौसम मेरा धुंध कही पे छाई है
तुम बिन मेरा जीवन क्या है एक अदद तन्हाई है
दिल में पतझड़ का है मौसम ग़म ने झड़ी लगाई है
तुम बिन मेरा जीवन क्या है एक अदद तन्हाई है
दिन में बसते ख्वाब तेरे रातो ने आग लगाई है
जाने कैसे तूने दिल में अपनी जगह बनाई है
बीत गए हैं मौसम कितने फिर भी तू ना आई है
तुम बिन मेरा जीवन क्या है एक अदद तन्हाई है।।।
बरसो बीते चलते चलते राह अकेले पायी है
राहों में है धुल जमी कैसी विरानी छाई है
तुम बिन मेरा जीवन क्या है एक अदद तन्हाई है।।
---- सुनिल #शांडिल्य
No comments:
Post a Comment