Saturday, October 1, 2022

 कितना आनंद देती हैं

एकांत के पलोँ मेँ

मेरी आत्मा में बसी तुम्हारी हँसी


जब समय की बूंदेँ 

धीरे-धीरे रिसती हैं

सुबह का मुख चूमकर

रात जाती है और चारों तरफ

तुम्हारी खुशबू बिखर जाती है


तब होता है एक ऐसा सबेरा

जब तुम 

थोड़ा बतियाती थोड़ा इठलाती

अपनी लटोँ को उड़ाती

अठखेलियां करती 

मेरे ख्यालों में आती हो


तब कुछ खामोश संवाद

कुछ साझा सपने

जो हमने देखे हैँ

उनके पूरा होने की उम्मीद बनती है


पर जानता हूँ 

ये एक कल्पना है लेकिन

यही मेरा सपना है...


---- सुनिल #शांडिल्य

No comments:

Post a Comment