Tuesday, October 11, 2022

 विरह धार हम दो कूल मिल सकेंगे क्या  कभी।

मन की व्यथा तड़प बन प्राण हर लेगी अभी।।


मीन नयन सम ये अखियाँ नहीं झपकतीं पल पलक।

स्मृति पटल पर अंकित नहीं मिटती दिव्य झलक।।


चाँद आकाश में ढूँढ़ रहा है प्रेयसी चाँदनी।

उसके संतप्त उर में बज रही विकल रागिनी ।।


---- सुनिल #शांडिल्य

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