कुछ कहता हूँ तुम्हें,
कुछ कहते कहते रह जाता हूँ,
कुछ लिखता भी हूँ तुम्हें,
कुछ लिखते लिखते रह जाता हूँ।
कुछ करीब आता हूँ तुम्हारे,
कुछ करीब आते आते रह जाता हूँ,
कुछ दूर भी जाता हूँ तुमसे,
कुछ दूर जाते जाते रह जाता हूँ।
कुछ मिलता हूँ तुमसे,
कुछ मिलते मिलते रह जाता हूँ,
कुछ ना कहते हुए भी सब कह जाता हूँ
मगर सम्पूर्ण हूँ तुमसे ही,संतृप्त भी हूँ तुमसे ही,
तुमसे ही सदा प्रज्ज्वलित रह जाता हूँ।
कुछ कहता हूँ तुम्हें,
कुछ कहते कहते रह जाता हूँ,
कुछ लिखता भी हूँ तुम्हें,
कुछ लिखते लिखते रह जाता हूँ।
---- सुनिल #शांडिल्य
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