धीरे धीरे चिलमनों को ,वो हटाने सी लगी
बिजलियां मेरे जिगर पे, फिर गिराने सी लगी
रात भर हम करबटें, यूं ही बदलते रह गये
याद जब हमको किसी की,कुछ सताने सी लगी
जब निगाहों के लिये , वो तो चुराने सी लगी
तब हुआ महसूस यूं , दामन बचाने सी लगी
---- सुनिल #शांडिल्य
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