कौन कहता है मुझे दर्द का एहसास नहीं।
वहम तो है कि मुझे इश्क का विश्वास नही।
आईना हूं नहीं कि जख्म दिखाऊं तुमको,
जिंदगी उदास है कि तुम मेरे पास नहीं।
बिछड़े हुए पल हैं, यादें हैं और गम भी हैं,
वक्त गुजर जाता है और कोई आस नहीं।
जैसे तुमने चाहा,मगर वैसा बन न सका,
जैसा मैं हूं तुम्हारे लिए कोई खास नहीं।
ये मोहब्बत है,तमाशा कोई नुमाइश नहीं,
भरम क्यों है के मुझको कोई प्यास नहीं।
कैद जज्बात हैं अब रूबरू कैसे कह दूं,
तुम्हारी परछाई भी मेरे आस-पास नहीं।
यादों की मौजें तो बहती चली जाती हैं,
दिल की बातों से तुम को कोई रास नहीं।
दर्द उबलता है तो अश्क निकल आते हैं,
विह्वल वो समझते हैं मुझे कोई फांस नहीं
---- सुनिल #शांडिल्य
No comments:
Post a Comment