Sunday, October 30, 2022

संकोच शर्म झिझक का साया
क़रीब उसने जब दिलवर को पाया

सकुचाई सी सिमटने लगी खुद में
धीरे से जब उसका घूँघट उठाया

निगाहें झुक सी गयी
धड़कने रुक सी गयी

एक ख़ुश्बू टकरायी सासों से
पिघलने लगा जज़्बात एहसासों से

धीरेसे कंगन खनकाया
संकोच शर्म झिझक का साया
क़रीब उसने जब दिलवर को पाया

---- सुनिल #शांडिल्य

No comments:

Post a Comment