क़रीब उसने जब दिलवर को पाया
सकुचाई सी सिमटने लगी खुद में
धीरे से जब उसका घूँघट उठाया
निगाहें झुक सी गयी
धड़कने रुक सी गयी
एक ख़ुश्बू टकरायी सासों से
पिघलने लगा जज़्बात एहसासों से
धीरेसे कंगन खनकाया
संकोच शर्म झिझक का साया
क़रीब उसने जब दिलवर को पाया
---- सुनिल #शांडिल्य
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