चंचल मन मेरा कह रहा
जो मैं भंवरा बन जाऊं
गुन-गुन मधुर गीत गाऊं
झूमे मुस्काए कलियां
खेलें प्यारी अठखेलियां
जो मैं कुसुम बन जाऊं
उपवन की सुंदरता बढ़ाऊं
रंग बिरंगे पुष्पो से मिल
पंख पसार उड़ जाऊं
उन्मुक्त गगन में उड़ने का सुख
क्या है ? धरा को बताऊं।।
---- सुनिल #शांडिल्य
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