सुमन सुशोभित सुरभित सरसिज,
संग सरिता श्रृंगार लिए।
मंथर- मंथर मुदित मृदुलता,
मादक मन मनुहार लिए।।
अंक. लिये निज निश्छल उर मे,
भावप्रवण बह रही सरिता।
कुसुमकली की कलियाँ कैसे,
कल-कल कल कह रही कविता।।
पुलकित प्रेम चुमि प्रियतम पदतल,
पंकज प्रीत संवार लिए।
मंथर- मंथर मुदित मृदुलता,
मादक मन मनुहार लिए।।
भावप्रबल उत्कट अभिलाषा,
वह लिये हृदय के द्वार खड़ी।
बह आये निर्झर से नयना,
अंंसुवन जल पग धार पड़ी।।
चंचल चित्त चपल चन्द्रिका,
निज चिंंतित चित्त विस्तार लिए।
---- सुनिल #शांडिल्य
No comments:
Post a Comment