Wednesday, November 30, 2022

मन गगन उपवन
चित चपल चंचल
सहयोग भी निस्वार्थ है
हां मित्रता विश्वास है ।

निज मित्र के उत्थान में
अपना भी गौरव गान है ।
हों तन भले ही दो
मन एक विद्यमान है ।
संबंध के अनुबंध में
संबंध यह कुछ खास है
हां मित्रता विश्वास है ।

निज मित्र के कल्याण को
श्री कृष्ण ने प्रण तोड़कर
बलिदान हो गया कर्ण भी
सर्वस्व अपना छोड़कर
इस प्रेममय संबंध का
बस त्याग ही विज्ञान है
हां मित्रता विश्वास है

हो हर तरफ आनंद या
फिर जिंदगी की धूप हो
दुःख की घिरी हो बदलियां
या कुछ और समय का रूप हो 
मित्रता एक आस है !

~~~ सुनिल #शांडिल्य

No comments:

Post a Comment