नारी को कहे लक्ष्मी यहां
नर को कहते हैं शंकर
मैं हूं अर्धनारीनटेश्वर
हां मुझे कहते हैं किन्नर
पुरुषोंका छबीलापन है
स्त्री की मनमोहक अदा
दुख भरे हैं दिल में मेरे
फिर भी चाहती रहु सदा
हां हुं थोड़ी मुंहफट मुजोर
पैसे मांगती हूं जबरदस्ती
दूर भागते मुझे देखके तो
टूट जाती है मेरी हस्ती
मैं भी चाहती हूं मान सम्मान
ना अब हाथ फैला के जीना
मेहनत कर धन कमाऊ तो
चौड़ा हो जाए गर्व से सीना
~~~ सुनिल #शांडिल्य
No comments:
Post a Comment