Monday, November 7, 2022

ढ़ूंढते हॆं रेत में हम नदी के गीत
तोड़ कर पहाड़ जो धरा पे धार धार थे

धार धार थे समय के ऒर आर- पार थे 
आर ऒर पार की सर्जना के गीत

युग की प्यास के लिये जो नीर क्षीर थे हुये
व्यास कालिदास ऒर फिर कबीर थे हुये

रीतियों के बंधनों से मुक्त जिनकी रीत 
गीत फिर से राह एक प्यार की बनायेंगे

सृष्टि के हजार रंग एक रंग नहायेगे 
गीत वे कि सिद्धि- साध्य ज़िन्दगी के मीत 

---- सुनिल #शांडिल्य

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