तोड़ कर पहाड़ जो धरा पे धार धार थे
धार धार थे समय के ऒर आर- पार थे
आर ऒर पार की सर्जना के गीत
युग की प्यास के लिये जो नीर क्षीर थे हुये
व्यास कालिदास ऒर फिर कबीर थे हुये
रीतियों के बंधनों से मुक्त जिनकी रीत
गीत फिर से राह एक प्यार की बनायेंगे
सृष्टि के हजार रंग एक रंग नहायेगे
गीत वे कि सिद्धि- साध्य ज़िन्दगी के मीत
---- सुनिल #शांडिल्य
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