सुख दुख बादल जैसे हैं
आते हैं और जाते हैं
ढंग भी कैसे कैसे हैं
सुख दुख बादल जैसे हैं
बैठे बैठे रात कट गई
रोते सोते दिन बीता
दुख का पहरा है घर में
तो रस घट लगता है रीता
आँसू भरे नयन सागर के
रंग भी कैसे कैसे हैं
अपनों की पहचान हुई कि
संग भी कैसे कैसे हैं
करुण हृदय में दर्द भरा है
अश्रु नीर छल छल बहते
अनहोनी के साये में वे
मन की व्यथा कहाँ कहते
ग़म की कट जाती हैं रातें
सुख का सूरज भी आता
नए उजालों के सपनों में
सुख दुख बादल जैसे हैं
---- सुनिल #शांडिल्य
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