Tuesday, November 8, 2022

सुख दुख बादल जैसे हैं
आते हैं और जाते हैं
ढंग भी कैसे कैसे हैं
सुख दुख बादल जैसे हैं

बैठे बैठे रात कट गई
रोते सोते दिन बीता
दुख का पहरा है घर में
तो रस घट लगता है रीता

आँसू भरे नयन सागर के
रंग भी कैसे कैसे हैं
अपनों की पहचान हुई कि
संग भी कैसे कैसे हैं

करुण हृदय में दर्द भरा है
अश्रु नीर छल छल बहते
अनहोनी के साये में वे
मन की व्यथा कहाँ कहते

ग़म की कट जाती हैं रातें
सुख का सूरज भी आता
नए उजालों के सपनों में
सुख दुख बादल जैसे हैं

---- सुनिल #शांडिल्य

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