ना ही तू मुमताज मगर
उतना ही वार करारा करती
जालिम तेरी शोख़ नज़र
ना मैं दिला सकूं ताजमहल
ना कोहिनूर कर सकूं नजर,
प्यार से माथा चूमके तेरा
सजा दू बिंदिया माथे पर
ना ला सकता चांद तोड़कर
ना तारों तक पहुंच मगर
मेरे प्यार का वज़न तौलना
लाज से गिरती पलकों पर
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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