Thursday, December 22, 2022

ना मैं कोई शाहजहां
ना ही तू मुमताज मगर
उतना ही वार करारा करती
जालिम तेरी शोख़ नज़र
ना मैं दिला सकूं ताजमहल
ना कोहिनूर कर सकूं नजर,
प्यार से माथा चूमके तेरा
सजा दू बिंदिया माथे पर
ना ला सकता चांद तोड़कर
ना तारों तक पहुंच मगर
मेरे प्यार का वज़न तौलना
लाज से गिरती पलकों पर

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

No comments:

Post a Comment