मैं इबारतों के माफिक
अदब से रखना चाहता हूं तुम्हें
डायरी_में रखकर वहीं पर
लगा देना चाहता हूं एक मोरपंख
तुम्हारे नाम के शब्दों को
अदब से ढककर
सच में ! मैं लिखना चाहता हूं
सिर्फ तुम्हें ही
ख्वाबों की व्याकरण के साथ
मैं चाहता हूं
बिखरकर सिमट जाना
तुम्हारे आगोश के आवरण में
चिट्ठियां बनाकर छुपाना चाहता हुं
तुम्हारे अस्तित्व को हर छंद की व्याख्या में,
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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