Saturday, December 24, 2022

बड़ा विचित्र है ना
मैं इबारतों के माफिक
अदब से रखना चाहता हूं तुम्हें

डायरी_में रखकर वहीं पर
लगा देना चाहता हूं एक मोरपंख

तुम्हारे नाम के शब्दों को
अदब से ढककर
सच में ! मैं लिखना चाहता हूं

सिर्फ तुम्हें ही
ख्वाबों की व्याकरण के साथ
मैं चाहता हूं

बिखरकर सिमट जाना
तुम्हारे आगोश के आवरण में 
चिट्ठियां बनाकर छुपाना चाहता हुं 
तुम्हारे अस्तित्व को हर छंद की व्याख्या में,

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

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