Saturday, December 31, 2022

इच्छाओं का विस्तृत संसार 
इच्छाएं ही है मन का द्वार 
मां की गोद से मृत्यु के आगोश तक 
जितनी सांसे चलती हैं,
उतनी ही इच्छाएं  पलती हैं

एक इच्छा पूर्ण हुई तो ,
दस इच्छाएं पनपती हैं 
इच्छाओं को पूरा होते होते,
समय पूरा हो जाता है,
सबकुछ समाप्त हो जाता है
फिर भी इच्छाए रहती है।

चक्रवृद्धि ब्याज की तरह
दिन और रात की तरह 
चढ़ती उतरती सांस की तरह 
इच्छाओ का विस्तृत विस्तार 
हर पल यह बेचैन करती है

चैन से जीने नहीं देती है 
जरा सी आंख लगी ही थी 
अभी तो प्यास बुझी ही थी 
फिर से कोई नई इच्छा ने
मन पर दस्तक दे दी हैं।

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

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