Saturday, December 31, 2022

बाहर का अंधियारा.
जरूर मिटा सके तुम, रोशनियों के सहारे,
चमकती रही तुम्हारी सडकें .गलियाँ,तुम्हारा तन
और शाएद तुम्हारी हर छोटी बड़ी इमारतें भी, 
पर तुम्हारे कलुषित मन में,
कब होगा उजिआरा,
कब होगी रोशन तुम्हारी सोच भी,
प्रज्वलित दिया कब तक देगा तुम्हें
संकीर्ण तमस से मुक्ति
कब होगी तुम्हारे अंतर्मन की ,
सूर्य रश्मियों से भरी वो सुबह 
जिसका बड़ी बेसब्री से मुझे ,
भी है इंतजार ,
क्योंकि मुझे भी है बहुत प्यार,
तुमसे ,तुम्हारे मन से..................

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

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