रौशनी की चाह नहीं मिलती
कभी ग़ुमनामियों के रास्तों से
राह नहीं मिलती
ये मंज़र है अनूठा सा
समुन्दर ही है प्यासा सा
ये बेनूरी, ये बेज़ारी
है दिल में दर्द जागा सा
कभी ख़ुद ज़िन्दगी को
ज़िन्दगी की चाह नहीं मिलती
सुबह आती है-जाती है,
ये शाम आ कर रुलाती है
सुहानी याद भी आ कर,
हमें हर दिन बुझाती है
कभी ख़ुद बेबसी को,
बेबसी की चाह नहीं मिलती
कभी ग़ुमनामियों के रास्तों से,
राह नहीं मिलती
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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