चंचल चितवन नयन मतवारे।
लज्जा भार से झुके यह प्यारे।।
अरूनाई के प्रेम में डूबे।
स्वप्न भार में पूरे डूबे।।
नयन स्वप्न में खोये ऐसे।
दीप तेल में डूबा जैसे।।
मदिरा छलके अधर यह थिरके।
मदभरे नयना छलके-छलके।।
भौंह कमान बाण जब साधे।
हृदय पक्षी बिध जाए आके।।
बना पतंगा हृदय अधीरा।
ठगा गया ज्यों बुद्धि छीना।।
नाक स्वर्ग की मानों हेतू।
हारा वीर मलंग निकेतू।।
मांग सिंदूरी चमके ऐसे।
जग-जग जरे दीप हो जैसे।।
त्रिकुटी बीच बिन्दु की शोभा।
देख लालिमा मन यह लोभा।।
बेदी माथ पर ऐसी लटकी।
मानों बेल वृक्ष पर अटकी।।
~~~ सुनिल #शांडिल्य
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