हे प्रकृतिवधू, हे महाशक्ति,हे कमल नयन, हे रूपवती।
डिगजाते तुमको देखदेख,साधू संन्यासी और यती।।
हे विधुबदनी, हे मृगनयनी,हो ममता का बारिध बिशाल।
काली-काली अलकें ऐसी,जैसे फुंकारें ब्याल-ब्याल।।
हे प्रेमपुष्प, हे सुरभिकोष,आनंदकोष हो हे प्रियवर।
यह जीवन न्योछावर करता,मैं सौ बार प्रिये तुम पर।।
~~~ सुनिल #शांडिल्य
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