शायद चितवन देख रही प्रीतम की ओर
सावनकी घटासे बाल बिखरे चारोओर
तेरी सुंदरता का नहीं नज़र आ रहा तोर
मोती जैसे दांतो से पकड़ रखा था छोर
तेरा सौम्य सौंदर्य दिल को रहा झकजोर
जंजीर,कानों में कुण्डल झूला झूले चारोओर
साजन की खातिर वो न देख रही काउओर
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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