छूप कर बैठा है रुठ कर कोई
नज़रो से चुरा रहा नजरे कोई
पसंद हमे तेरा यहीं अंदाज हैं
माना कि रिश्ता नहीं तुमसे कोई
खामोशी से करता बातें कई
शब्दों से उलझते रिश्ते कई
दिल से बंधी एक डोर हैं
टूटते नहीं दिल के अरमान कई
जनम जनम की प्यास कोई
बुझती नहीं अब आस कोई
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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