ऐसा कोई कलम-कार नहीं
ऐसी कोई नहीं लेखनी
जिससे तुझ पर रचना हो
ऐसा कोई न कागज है
जिस पर तेरी गढ़नी हो
कैसे तेरी बने जीवनी
जिसका कोई अंत नहीं है
कोई आरंभ न मिला मुझे
फिर भी कुछ कहता हूँ
बड़ी शिद्दत से कुछ लिखता हूँ
तुम सांसों की धड़कन सी हो
तुम ख्वाबों की खामोशी
तुम लगती चाँद-सितारों सी
तुम जीवन की मर्यादा
तुम सिसकी-सिमटी सी
तुम परिवारों की इज़्ज़त हो
तुम सहन शक्ति की सीमा हो
तुम सबके मन को हरने वाली
तुम रंगमंच की गुड़िया हो
तुम अति सुलझी अति उलझी हो
तुम नारी हो, तुम नारी हो
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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