Tuesday, January 3, 2023

कभी बाहर तो कभी भीतर रेंगता रहा
मेरा सच कमर टूटे श्वान सा
शाम तक 
देखता रहा औचक गुज़रते विमान
हिना से लाल व रेशमी परदों वाले
हाँ शायद वो दिन
अमावस का ही रहा होगा 
तभी तो
ग्रहण काल में दिखी थी
उस दिन 
सुबह की ललाई
तभी तो अल सवेरे उगा था चाँद
थोड़ा सा
सहमा सा
क़तरा भर

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

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