Wednesday, February 15, 2023

हे प्रिय, मैं नहीं जानता कि,
यह ढाई अक्षर प्रेम का क्या है?
क्या तुम्हारे अप्रतिम लावण्यमय,
ऋतुराज में पुष्पित पल्लवित महकते उपवन से,
पलागमों से लदी सुगन्धित वृन्तियों से,
इंद्रधनुषी रंगों की छटाओं को,
पराभूत करते हुए, योवन भार से लदे,
रूप सौंदर्य को,
अपलक निहारते रहना
या,
तुम्हारे कमनीय,रमणीय,रससिक्त,स्नेहिल,
अंगों की कोमलता का स्पर्श अथवा,
तुम्हें अंकपाश में लेकर,
निज स्कंध पर तुम्हारी सुगंधित केशराशि को,
बिखराने की आकांँक्षा,
सांसो में सांसों का घुलना,
मात्र इतना नहीं है मेरा प्रेमाख्यान अपितु,
इससे कहीं आगे बहुत आगे
सारे बंधनों की सीमाओं से परे,
और ही कुछ है जो मुझे कहना है,
तुम्हारे समक्ष अपनी कविता के शब्दों में।
नश्वरता से शाश्वतता की ओर,
दो आत्माओं के परस्पर मिलनोपरान्त,
देशकाल की सीमाओं और बंधनों से परे,
एक अनावेशी स्तंभ पर,जाकर ठहर जाना,
और एकाकार होकर,
अनंत काल तक रहना है।

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

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