आह से, कराह से, सिसकी से,रोदन से,
आंसुओं से भीग रहे नेह भरे आंचल से,
मेघों के गर्जन और तड़ित संग वर्षा से,
भीगे जो तन मन ये अंधियारी रातों में,
फिर भी न ज्वाल बुझे तन मन जलाए जो,
टूट गया मन की जो वीणा का एक तार,
स्वर की संगीत की गायन की वादन की,
तृषा है समुंदर सी,जल की न बूंद किंतु
अटक गए प्राण ज्यों,कंठ में हैं कंटक से
अब तो न बाकी है,धैर्य मेरा किंचित भी
सदियों से तेरे बिना जो कि कभी संचित था
आस भी है टूट चली,अब तो प्रतीक्षा की
प्यासी है हर सांस प्यासा यह जीवन है
अब है अधीर मन विह्वल है तेरे बिन
आ जाओ एक दिन
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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