लहरों के उद्दाम
वेग सी
चातुर्मास के बरसते
मेघ सी ......तुम !
एक अँजुरी नदी की
धार सी
सत मोतिकाओं के
अनुपम हार सी ....तुम !
मनभावन प्रिय
मनमीत सी
रात में गाये हुए
गीत सी ....तुम !
कवि के गन्ध रचती
छंद सी
सम्बोधनहींन
अनुबन्ध_सी.....तुम !
सिर्फ तुम!!!
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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