यह सचमुच आभास नहीं था
बनजाओगे दिलकी धड़कन
किंचित भी अहसास नहीं था
सिर्फ कनखियों से चुपचुप मैं
अक्सर तुमको देखा करता
लाख बचाया करता नज़रे
देखे बिना न जियरा रहता
शायद विधिविधान के चलते
एकदिवस टकराई अँखियाँ
सूनेसूने मन आँगन में
शेष तुम्हारी केवल सुधियाँ
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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