आज सरे बज्म महक जाऊं मैं
तेरे चांद से मुख का दीदार कर
आज संवर जाऊं मैं
मुंतजिर हूं तुझसे तन्हा मुलाकात को
चाहत की झुरमुट मे आज निखर जाऊं मैं
चाँद मेरी ना घूर मुझे
कहीं सर्दी में भी न पिघल जाऊं मै
आज रात आ मेरे आग़ोश में
तेरी रंगत में ढल जाऊं मैं
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
No comments:
Post a Comment