ऐसा क्यों होता है हम भी मन_ही_मन सोचा करते हैं ।
जब भी मन बेचैन हुआ है दिल ने उनको याद किया है
लेकिन कब किसकी यादों ने घर आंगन आबाद किया है ।
वो कैसे हैं उनके मिलने वालों से पूछा करते हैं।
लेकिन लगता है हाथों में कहीं लकीर नहीं है ऐसी
हाथ में उनके जैसी है मेरे हाथ में भी है वैसी
फिर भी ना जाने क्यों अपने हाथों को देखा करते हैं
जीवन का हर पल कहते हैं केवल रब की ही मरजी है
हम तो मात्र खिलौने भर हैं। अभिलाषा केवल अरजी है
इसीलिए हम बार बार अपने मन को रोका करते हैं
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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