Tuesday, March 7, 2023

चेहरे का नूर है स्वर्ण से साधित।
चक्षु की चंचलता,विह्वल आह्लादित।

नासिका नकबेसर से पूर्ण सुशोभित
तेरे मुखमंडल पर तुम ही हो मोहित।

उभरे हुए गालों पर अल्कें हैं बिखरे।
उतरी हुई लट से ये और अति निखरे।

काले घने जुल्फों से रौशन है स्याही।
रेशम सी कोमल चमकती योगिता सी।

अधर,ओष्ठ कम्पित हर गीत विरहा सी।
थिरके अब प्रेम-राग ओठों पर हाँ सी।

ग्रीवा पर चंद्रहार चन्द्रमा लजाये।
उतरी हुई छाती तक ज्योति बिखराये।

सोने की आभा से गढ़ा हुआ देह।
रोम,रोम कूपों से छूता हुआ नेह।

उन्नत उरोज,बाँह सुगठित सुडौल।
कंधे पर हाथ रख के सुन्दरता खौल।

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

No comments:

Post a Comment