Thursday, April 13, 2023

हिम किरीट से निकल,
तू हिमतरंगिणी बनी।
सकल धरा को चूमकर,
तू है विहंगिणी बनी।

स्वतंत्र तंत्र से निकल,
अजंत पथ तू आ रही।
सुमन लिए कलम मेरी,
है प्रार्थ तेरी गा रही।

तुषार हार रूप में,
तू शुभ्रा है, तू निर्झरी।
दरस तेरा ही पाने को,
वह झुक गई है मंजरी।

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

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