भर रही जो गीत में गुंजन मधुर मुस्कान तेरी
क्या पता कल किन अभागे आंसुओं में डूब जाये,
यह खिली चम्पाकली की गंध सी चितवन सजीली
यह भ्रमर के छंद सी उन्मुक्त स्वर-बन्सी सुरीली
यह पवन के साथ हिलमिल खेलती सी चपल चूनर
यह थिरकती चाल जिस पर हों निछावर नृत्य-झूमर
लाज के पट खोल हंसती ये निपट नटखट भ्रकुटियाँ
ये पुलकते शब्द जैसे झर रहे हों नेह-निर्झर,
प्रेरणाओं को निमंत्रण दे रहे ये नयन तेरे
क्या पता कल,स्वयं वह कितने सजल सावन बहाये,
कौन से ये मेघ जाने फ़िर गगन में छा रहे हैं
ये सुखद संयोग के क्षण बीतते ही जा रहे हैं,
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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